हनुमान चालीसा #ॐ_हं_हनुमंते_नमः #जय_बजरंगबली

  हनुमानचालीसा भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।। लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। जय "श्री हनुमान" जी जय "श्री राम" #ॐ_हं_हनुमंते_नमः #जय_बजरंगबली

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मंदिर जाएं तो परिक्रमा और ये काम जरूर करें

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हम जब मंदिर जाते हैं तो पूजा अर्चना के साथ ईश्वर की परिक्रमा भी करते हैं। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु भगवान का ध्यान करते हैं और प्रतिमा की पीठ के पास अपनी मनोकामना कहते हैं। माना जाता है कि इससे भगवान शीघ्र ही उसकी इच्छा पूरी करते हैं। इसके अलावा मंदिर जाने पर हम क्या ऐसा करें कि हमें बेहतर फल मिले। ब्रह्मांड में विभिन्न ग्रह-उपग्रह अपने पथ पर परिक्रमा करते हैं जिससे दिन-रात, ऋतु-माह बदलते हैं, सृष्टि का संतुलन बना रहता है। साथ ही वे इससे ऊर्जा भी प्राप्त करते हैं। परिक्रमा के संबंध में एक पौराणिक कथा भी कही जाती है। कहते हैं कि जब गणेश और कार्तिकेयजी के बीच यह प्रश्न उठा कि दोनों में से श्रेष्ठ कौन है, तो वे कार्तिकेय संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकले और गणेशजी ने वहीं माता पार्वती और भगवान शिव की परिक्रमा कर ली। प्रतियोगिता में गणेशजी विजयी हुए। भगवान की परिक्रमा करने मात्र से संपूर्ण ब्रह्मांड की परिक्रमा, तीर्थों का फल मिल जाता है। इसलिए मंदिर में भगवान के दर्शन-पूजन के साथ ही परिक्रमा करने का भी विधान है। परिक्रमा के दौरान मन में शुभ भावों पर ही मनन करना चाहिए। बहुत तेजी से या बहुत धीमी गति से परिक्रमा नहीं करनी चाहिए। परिक्रमा पथ में सांसारिक विषयों से संबंधित बातें नहीं करनी चाहिए। पथ में पीछे की ओर लौटना, हंसी-मजाक करना या उच्च स्वर में नहीं बोलना चाहिए। परिक्रमा के दौरान अपने इष्ट देव के मंत्र का जाप करने से उसका शुभ फल मिलता है। जब हम मंदिर जाते है तो हम भगवान की परिक्रमा जरुर लगाते है पर क्या कभी हमने ये सोचा है कि देव मूर्ति की परिक्रमा क्यों की जाती है? शास्त्रों में लिखा है जिस स्थान पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई हो, उसके मध्य बिंदु से लेकर कुछ दूरी तक दिव्य प्रभा अथवा प्रभाव रहता है। यह निकट होने पर अधिक गहरा और दूर-दूर होने पर घटता जाता है, इसलिए प्रतिमा के निकट परिक्रमा करने से दैवीय शक्ति के ज्योतिर्मंडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है से तो सामान्यत: सभी देवी-देवताओं की एक ही परिक्रमा की जाती है परंतु शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग संख्या निर्धारित की गई है। इस संबंध में धर्म शास्त्रों में कहा गया हैं कि भगवान की परिक्रमा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और इससे हमारे पाप नष्ट होते है। सभी देवताओं की परिक्रमा के संबंध में अलग-अलग नियम बताए गए हैं ।

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