सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य (1501-1556) भारतीय इतिहास के उन वीर योद्धाओं में से एक थे, जिन्होंने मुगलों और अफगानों के विरुद्ध संघर्ष किया और स्वतंत्र शासन की स्थापना की। उन्हें आमतौर पर हेमू के नाम से जाना जाता है। वे मुगल बादशाह अकबर के राज्याभिषेक से पहले कुछ समय के लिए दिल्ली के सम्राट बने और स्वयं को "विक्रमादित्य" की उपाधि दी।
प्रारंभिक जीवन
हेमू का जन्म 1501 ईस्वी में हरियाणा के रेवाड़ी क्षेत्र में एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनका परिवार एक सामान्य व्यापारी वर्ग से था, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कौशल ने उन्हें प्रशासन और युद्धनीति में कुशल बना दिया।
शेरशाह सूरी के शासनकाल में, हेमू ने अफगान शासन के अधीन विभिन्न पदों पर कार्य किया और धीरे-धीरे अपनी सैन्य और प्रशासनिक क्षमता से शक्तिशाली बनते गए। उन्होंने इस्लाम शाह सूरी के दरबार में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया और अफगान शासन की कई युद्ध अभियानों का नेतृत्व किया।
सत्ता की ओर अग्रसर
1555 ई. में, जब मुगलों ने हुमायूं के नेतृत्व में दिल्ली पर पुनः अधिकार कर लिया, तो अफगान सरदारों ने हेमू को अपना सेनापति नियुक्त किया। हेमू ने कई युद्धों में विजय प्राप्त की और 22 लड़ाइयाँ जीतकर दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
7 अक्टूबर 1556 को, उन्होंने दिल्ली में अपना राज्याभिषेक किया और "सम्राट विक्रमादित्य" की उपाधि धारण की। इस समय, अकबर की उम्र केवल 13 वर्ष थी और बैरम खान उसके संरक्षक थे।
पानीपत की दूसरी लड़ाई (1556)
हेमू और मुगलों के बीच निर्णायक संघर्ष 5 नवंबर 1556 को पानीपत की दूसरी लड़ाई में हुआ। प्रारंभ में हेमू की सेना का पलड़ा भारी था, लेकिन युद्ध के दौरान एक तीर उनके आँख में लग गया, जिससे वे घायल हो गए और उनकी सेना में अफरा-तफरी मच गई। अंततः, हेमू को बंदी बना लिया गया और अकबर के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
बैरम खान के निर्देश पर, अकबर ने हेमू का वध कर दिया और मुगलों ने पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
उत्तराधिकार और विरासत
हेमचन्द्र विक्रमादित्य भारतीय इतिहास के उन कुछ हिंदू शासकों में से एक थे, जिन्होंने मध्यकालीन भारत में दिल्ली पर शासन किया। उनकी वीरता और साहस ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम के पहले नायक के रूप में प्रतिष्ठित किया।
हालांकि, भारतीय इतिहास में उनकी भूमिका को उतना महत्व नहीं दिया गया, जितना कि अन्य शासकों को दिया गया। फिर भी, हेमू को एक महान योद्धा, कुशल प्रशासक और रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है।
निष्कर्ष
सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की कहानी हमें यह सिखाती है कि संघर्ष और परिश्रम से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने न केवल मुगलों का सामना किया, बल्कि कुछ समय के लिए दिल्ली की सत्ता पर हिंदू शासन की पुनः स्थापना भी की। उनका जीवन त्याग, संघर्ष और वीरता का प्रतीक है।
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